करवा चौथ व्रत कथा | Karva Chauth Vrat Katha

Karwa Chauth Katha In Hindi

दीपावली त्यौहार के ठीक १२ दिन पहले होने वाला करवा चौथ व्रत कथा एवं आरती भारतीय संस्कृति में सुहागिन महिलाओं का सबसे पवित्र व्रत माना जाता है। यह व्रत पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन की खुशहाली के लिए रखा जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से चंद्रमा के दर्शन तक निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल ग्रहण करती हैं। माना जाता है इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं के सुहाग की रक्षा होती है। यह व्रत प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। जो स्त्रियाँ सच्चे मन से यह व्रत करती हैं, उनके जीवन में सदैव सुख-शांति बनी रहती है।


Karva Chauth Vrat Katha

करवा-चौथ रखने की विधि

कार्तिक के कृष्ण पक्ष की चौथ (चतुर्थी) को करवा-चौथ पूरे भारत में मनाई जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का यह बहुत बड़ा महत्वपूर्ण व्रत है । स्त्रियाँ इस व्रत को अपने पति के दीर्घ जीवी होने के लिये करती हैं। बहुत सी जगह स्त्रियाँ दीवाल पर " करवा-चौथ " रखती हैं जिसे "वर" कहते हैं।

इस करवा-चौथ में पति के अनेकों रूप बनाये जाते हैं और सुहाग की वस्तुयें जैसे-चूड़ी, बिन्दी, बिछुआ, मेंहदी, महावर आदि बनाते हैं। इसके अलावा दूध देने वाली गाय, करुवा बेचने वाली कुम्हारी, महावर लगाने वाली नाईन, चूड़ी पहिनाने वाली मनिहारिन, सात भाई और उनकी एक इकलौती बहिन, सूर्य, चन्द्रमा, गौरा, पार्वती आदि के चित्र बनाते हैं।

इस दिन स्त्रियाँ दिनभर निर्जल व्रत रखकर रात्रि को जब चन्द्रमा निकल आवे तब उसे अर्घ्य देकर और अपने बड़ों के पैर छूकर तथा पति की पूजाकर भोजन करती हैं पीली मिट्टी की शिव गौरा बनाकर उनकी पूजा करनी चाहिये ।

करवा चौथ का वायना और पूजन विधि

इस दिन शुद्ध जल व गोबर से जगह लीपकर या एक पट्टे पर सतिया काढ़कर एक जल से भरा लोटा या करुआ उस पर रखें और ढक्कन में चीनी या बतासे भर लें । वायना काढ़ने के लिये एक खाँड का करुआ लें, उस के साथ एक पात्र में गेहूँ या चावल भरलें और इच्छानुसार नगद रुपया रख लें।

रोली, चावल, गुड़ आदि से गणेशजी की पूजा करें। रोली से करुए पर सतिया काढ़ें और हाथ में गेहूँ के दाने या चावल लेकर कहानी सुनें (बहुत सी जगह घर में जितनी सुहागिन स्त्रियाँ होती हैं वे सब अपने अपने मिट्टी या चाँदी के करुओं में जल भर कर नये-नये वस्त्र पहन ओढ़कर शाम को चौथ की कहानी सुनने बैठ जाती हैं और कहानी सुनकर आपस एक दूसरी एक दूसरे के साथ १४ बार करुओं की हेरा फेरी करती हैं (पलटती) हैं कहीं कहीं १३ का अंक अशुभ मानने के कारण १४ कर लिया गया है) फिर इन्हीं करुओं के जल से रात को चन्द्रमा के निकलने पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर रोली, चावल चर्चती हैं।

आजकल बहुत सी स्त्रियाँ मिट्टी के करुओं की जगह चाँदी के छोटे-छोटे करुए रखती हैं जो हर साल काम आते हैं इनके ढक्कन पर थोड़ी चीनी ४ या बतासे रख लें फिर कहानी सुनने के बाद मिंसने वाले करुए पर जल का हाथ फेर कर अपनी सासुजी को पाँय लगकर दे दें।

हाथ के गेहूँ या चावलों को तथा जल के लोटा को अलग उठाकर रख दें और रात्रि को चन्द्रमा के निकलने पर चंद्रमा के दर्शन करके लोटा या करुए के जल से अर्घ्य दें और हाथ के गेहूं व चावल तथा रोली छिड़क कर पूजा करें फिर बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेकर भोजन कर लेवें।

यदि बहिन या पुत्री कहीं बाहर परदेश में रहती हो तो उनके माता पिता तथा भाई वायना मिसने के लिये रुपया डाँक से भेज दें या हो सके तो करुआ गेहूँ या चावल इच्छानुसार रुपया तथा मिठाई एवं बर्तन आदि रखकर भेज दें। आजकल चीनी के करुए के साथ बर्तन आदि भी चल गये हैं यह अपनी श्रद्धा पर है ।

करवा चौथ की कहानी

एक राजा रानी थे । उनके सात बेटा बहू थे और एक पुत्री थी। जिसका नाम वीरनदेई था। यह अपने भाइयों की अत्यन्त प्यारी बहिन थी । कार्तिक कृष्ण पक्ष की चौथ (करवा-चौथ) आई सो वीरनदेई ने उस दिन व्रत रखा। भाई बिना बहिन ५ के भोजन नहीं करते थे।

भाइयों ने अपनी माँ से कहा- माँ ! हमें भोजन परोसो और साथ में बहिन को भी भोजन परोसो माँ ने कहा- आज तुम्हारी बहिन का व्रत है वह खाना नहीं खायेगी शाम को चन्द्रमा देखकर ही खाना खायेगी । इस पर भाइयों ने कहा जब चन्द्रमा निकल आवेगा तभी खावेगी।

माँ ने कहा- हाँ ! तब कुछ भाई नदी के उस पार पर पहुँच गये। एक भाई चंद्रमा की शक्ल की मसाल ले आया और एक भाई ने उसमें आग लगा दी, एक ने उसके ऊपर चलनी ढक दी, एक नसैनी पर चढ़ गया और लगा चाँद देखने, एक भाई ने कहा चन्द्रमा निकल आया है।

यह सुनकर बहिन भौजाई से बोली- भाभी चलो चन्द्रमा निकल आया है। भाभियों ने कहा तुम्हारा चंद्रमा निकल आया है हमारा नहीं निकला है। अब तो बहिन अकेली जाकर पूजा कर आई, अर्घ्य दे आई और भाइयों के संग जीमने बैठ गई। अब जैसे ही भोजन की थाली उसके पास आई तो पहले ग्रास में बाल निकला, दूसरे ग्रास में छींक हुई। और तीसरे ग्रास में हरकारा आ गया कि तुमको ससुराल में बुलाया है।

बेटी चलने को तैयार हो गई तब माँ बोली- बेटी ! तुझे जो कोई भी रास्ते में मिले सबके पाँव है लगती जाना, उसने वैसा ही किया। परन्तु किसी ने भी आशीर्वाद नहीं दिया । परन्तु जब ननद आगे से मिली तो उसके पाँव छूने पर उसने सौभाग्यवती और सात पू की माँ होने का आशीर्वाद दिया।

घर में जाकर उसने देखा कि पति मरा पड़ा है और उसके ले जाने की तैयारी हो रही है। वह भी संग-संग गई तथा रेती में पति की लाश रखवाली और हर समय सेवा करने लगी । ननद रोज आती चार रोटी तथा एक कुल्ले में दाल लाती जो वह खुद न खाकर रेती में ही गाढ़ देती।

कुछ समय बीतने के बाद अगहन मास की चौथ-माँ उसके पास आई और बोली कि किवाड़ खोल। 8 उसने किवाड़ खोले तथा चीथ-माँ को देखकर वह उसके पाँव छूने लगी। तब चौथ- माँ ने उसे धक्का मार दिया और बोली अरे व्रत खंडिनी, दूर रह, मेरे पैर न पकड़।

 उसके बहुत माफी माँगने पर चौथ बोली कि मुझसे बड़ी जो आवेगी वही तुझको सुहाग देगी। इसी तरह हर महीना चौथ आती और ऐसा कहकर चली जाती। जब ग्यारहवें महीने वाली चौथ आई तब उससे पुत्री ने बहुत विनती की, तब उसने कहा कि देख अब करवा चौथ आने वाली है और तुझे वही सुहाग लोटा कर देगी इसलिये त सभी सहाग का सामान पहले से ही मँगाकर रख लेना।

यदि वह तुझे मारे तो पिट लेना, कठोर शब्द बोले तो सुन लेना जैसा भी बुरा भला कहे सुन लेना, परन्तु तू उसकी प्रार्थना ही करना उसको छोड़ना मत । जब वह तुझसे सुहाग का सामान 8 माँगे तो एक-एक करके देती जाना बस वह तुझे तेरा सुहाग लौटा जावेगी ।

जब कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की करवा-चौथ आई तो उसने बताये अनुसार वैसा ही किया। अब तो चौथ माँ ने प्रसन्न होकर उसके पति पर अपनी कन्नी उँगली चीरकर छींटा ४ लगाये। छींटा लगाते ही उसका पति जीवित हो गया और उसकी झोंपड़ी को महल में बदल दिया।

अब तो वे दोनों महल में बैठे हुए सार फाँसे खेल रहे हैं। यह पता लगते ही सभी सुहागिन स्त्रियाँ करुए ले लेकर उसके पास आने लगीं। जब ननद आई तो वह यह सब देखकर बहुत आश्चर्य करने लगी और सोचने लगी कि मेरी भाभज की झोंपड़ी कहाँ चली गई।

पता करने पर मालूम हुआ कि यह वही झोंपड़ी है जिसकी जगह पर महल बन गया है। यह सभी वैभव चौथ परमेश्वरी का है। अब तो ननद बहुत प्रसन्न हुई। इतने में भोजाई ऊपर से उतरकर अपनी ननद के पास आई और पैर छूने लगी दोनों मिलकर बहुत प्रसन्न हुई।

यह सब समाचार सुनकर राजा रानी बहुत खुश हुए और उसको अपने पास लिवा लाये तथा नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि प्रत्येक सुहागिन स्त्री बारहों चौथ का व्रत अवश्य करे यदि बारह न बने तो चार का करे यदि चार भी न कर सके तो दो चौथ (करवा-चौथ और सकट चौथ का व्रत अवश्य ही करे। हे चौथ माता ! जैसा वैभव तैने वा बेटी को दिया वैसा सबको दीजो कहते कूँ सुनते कूँ हूँकरा भरते कूँ।

गणेशजी (बिन्दायकजी) की कहानी

एक अंधी बुढ़िया थी । उसके एक बेटा और बेटा की बहू थे। बुढ़िया बहुत गरीब थी। वह हमेशा गणेशजी की पूजा किया करती थी। एक दिन प्रसन्न होकर गणेशजी बुढ़िया से बोले कि बुढ़िया माँ ! तू जो चाहे सो वर माँग ले ।

बुढ़िया बोली मुझसे तो वर माँगना नहीं आता। कैसे और क्या वर माँगू?

तब गणेशजी बोले तू अपने मन में विचार करके कल आकर माँग लीजो। तब बुढ़िया खुशी-खुशी अपने घर आई और बेटा से कहने लगी आज गणेशजी मुझसे कह रहे हैं कि तू जो चाहे सो वर माँग ले । सो बता मैं क्या माँगू ? बेटा ने कहा-धन माँग ले फिर बहू से पूछा तो वह ने कहा- नाती माँग लो ।

तब बनिया ने योचा कि ये दोनों तो अपने अपने मतलब की चीज माँग रहे हैं। तब बुढ़िया ने पड़ौसिनों से पूछा तो पड़ौसिनों ने बुढ़िया से कहा तू तो थोड़े दिन जीवेगी क्यों धन माँगे और क्यों नाती माँगे ।

तू तो अपने दीदा गोड़ा माँग ले जिससे तेरी जिन्दगी आराम से कट जाये । बुढ़िया ने पड़ौसिन की भी बात न मानी और घर में आकर सोचने लगी कि जिसमें बेटा बहू राजी हों वह भी माँग लूँ और अपने मतलब की चीज भी माँग लूँ। जब वह दूसरे दिन गणेशजी की पूजा करने लगी तो गणेशजी आये और बोले- बुढ़िया माँ ! बोल क्या माँगे जो चाहे सो माँग ले।

झट बुढ़िया बोली- यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, दीदा गोड़ा दें, नाती पोता दें, जमाई धेवता दें, भाई भतीजे दें। और सब परिवार को खूब सुख दें, अन्त में मोक्ष दें। तब गणेशजी बोले- बुढ़िया माँ ! तूने तो हमें बहुत ठग लिया। खैर जो तूने माँगा है वह सब तुझे मिलेगा । यह कहकर गणेशजी अन्तर्धान हो गये और बुढ़िया माँ को माँगे अनुसार सब कुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज ! जैसे तुमने उस बुढ़िया को सब कुछ दिया वैसे हम सबको 8 देना । कहते कूँ सुनते कूँ हूँकरा भरते हमारे सारे परिवार को सब सुख दीजो ।

करवा-चौथ का उजमन

लड़की के विवाह की साल लड़की के माय के यहाँ से उजमन के लिये एक परात में चौदह जगह चार-चार पूड़ी और थोड़ा-थोड़ा सीरा या ४-४ सुहाली और लड्डू रख दें उसके ऊपर एक साड़ी, ब्लाउज, एक सुहाग पिटारी, १४ बर्तन व एक जग या एक गंगासागर में चावल या गेहूँ भरकर रखें, १४ चीनी के करुए और रुपये इच्छानुसार रख दें फिर उस परात के चारों ओर वह लड़की हाथ में जल रोली व चावल लेकर उस सब सामान के ऊपर हाथ फेरकर जमीन पर गेर दे फिर उस सामान को अपनी सासुजी को पाँय लगकर दे दे।

सीरा पूरी और उसके ऊपर दक्षिणा रख ब्राह्मणियों को दे दे तथा बिन्दी माथे पर लगाकर विदा करे या यह भी सासुजी को दे दे ।

श्री करवा माता की आरती

जय करवा माता,
मैया जय करवा माता,
जो कोई तुमको ध्यावत,
पार उतर जाता ॥

हम सब की माता हो,
तुम हो रुद्राणी,
तुम्हरे यश को गावैं,
हम सारे प्राणी ||

कार्तिक वदी चतुर्थी को,
जो नारी वृत करे,
पति होवे दीघार्यु,
दुःख जा दूर परे ||

रहे सुहागन हमेशा,
ऐसी हर नारी,
गणपति बने कृपालु,
विघ्न टरे भारी ||

करवा माता की आरती,
जो नारी नित गावै,
कहत भक्त शिवाकांत,
मन वांक्षित फल पावै ||

इति श्री करवा चौथ व्रत कथा एवं आरती सम्पूर्ण ||

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